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Sat, 13 Dec 2025 04:34 PM
धार्मिक / Dec 12, 2025

कब्रों की जिंदगी व मुर्दों को सवाब पहुंचाने का तरीका बताया गया।

इस्लामी बहनों की विशेष कार्यशाला।

सैय्यद फरहान अहमद

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।

मदरसा रजा-ए-मुस्तफा तुर्कमानपुर में इस्लामी बहनों की विशेष कार्यशाला हुई। कार्यशाला के आठवें सप्ताह में कब्रों की जिंदगी व मुर्दे को सवाब पहुंचाने का तरीका बताया गया। इस्लामी बहनों द्वारा दरूद बॉक्स बनाने का सिलसिला जारी रहा।

मुख्य वक्ता हाफिज रहमत अली निजामी ने कहा कि इस्लाम में मौत के बाद जीवन एक मौलिक आस्था है। इस अवधारणा को आखिरत कहते हैं। मृत्यु से लेकर कयामत तक की अवधि को बरजख यानी कब्र की दुनिया कहा जाता है। इस दौरान रूह भौतिक शरीर से अलग होकर एक अलग अवस्था में रहती है। कब्र में फरिश्ते रूह से उसके कर्मों और आस्था के बारे में सवाल करते हैं। कब्र में नेक लोगों को आराम मिलता है और बुरे लोगों को दंड मिलता है। एक निश्चित समय पर दुनिया समाप्त हो जाएगी, और सभी मृत लोगों को उनके कर्मों के हिसाब से न्याय के लिए फिर से जीवित किया जाएगा। अंतिम न्याय के बाद, अच्छे कर्म करने वालों को जन्नत में अनंत सुख मिलेगा और बुरे कर्म करने वालों को जहन्नम में सजा भुगतनी पड़ेगी। 

संचालन करते हुए कारी मुहम्मद अनस रजवी ने कहा कि मुर्दों को सवाब पहुंचाना इस्लाम में एक महत्वपूर्ण अमल है, जिसमें जीवित व्यक्ति किसी नेक काम जैसे कुरआन पढ़ना, दुआ करना, सदका देना, नमाज़ पढ़ना, हज-उमराह करना का सवाब मृतक की रूह तक पहुंचाते हैं, जिससे उनके दर्जे बुलंद होते हैं और उन्हें फायदा पहुंचता है, जिसे इसाले सवाब कहते हैं। यह मृत आत्माओं के लिए जीवित लोगों द्वारा किया जाने वाला एक प्रेमपूर्ण और धार्मिक कार्य है, जो उन्हें आखिरत में फायदा पहुंचाता है। पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसे प्रोत्साहित किया है, खासकर निरंतर दान, ज्ञान और नेक औलाद के जरिए, और यह दुआओं और अच्छे कामों के जरिए किया जा सकता है। मृतक के लिए अल्लाह से मगफिरत (माफी) की दुआ करना। कुरआन पढ़ना और उसका सवाब मृतक को बख्शना। मृतक की ओर से गरीबों को खाना खिलाना, कपड़े देना, मस्जिद बनवाना, अस्पताल बनवाना, स्कूल, कॉलेज, मदरसा बनवाना या अन्य नेक कामों के लिए दान करना। नफ्ल नमाज पढ़कर उसका सवाब पहुंचाना। अगर कोई फर्ज हज बाकी हो तो उसे पूरा करना या मृतक की ओर से करना। अल्लाह का जिक्र और पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दरूद ओ सलाम भेजना। उक्त तमाम कामों से मृतक के दर्जे बुलंद होते हैं। उनके कब्र की जिंदगी में आसानी होती है। जब कोई व्यक्ति मर जाता है, तो उसके कर्मों का सिलसिला बंद हो जाता है, सिवाय तीन चीज़ों के निरंतर दान (सदका-ए-जारिया), ज्ञान जिससे लाभ उठाया जा रहा हो, और एक नेक औलाद जो उनके लिए दुआ करे।

कार्यशाला में ज्या वारसी, नौशीन फातिमा, शबनम, नूर सबा, शीरीन सिराज, अफसाना, शिफा खातून, फिजा खातून, सना फातिमा, असगरी खातून, यासमीन, आयशा, फरहत, नाजिया, तानिया, अख्तरून निसा, अलीशा खातून, सादिया नूर, खुशी नूर मनतशा, रूमी, शीरीन बानो, समीना बानो, शबाना, सिदरा, सानिया, उम्मे ऐमन, अकलीमा वारसी सहित तमाम लोगों ने शिरकत की।

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Jr. Seraj Ahmad Quraishi
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