नमाज अदा करने से शारीरिक व मानसिक लाभ होता है - हाफिज रहमत अली
इस्लाम में मां-बाप का बहुत ऊंचा मकाम है - कारी मुहम्मद अनस
विशेष कार्यशाला का 5वां सप्ताह
सैय्यद फरहान अहमद
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
इस्लामी बहनों व इस्लामी भाईयों के लिए विशेष कार्यशाला का आयोजन हुआ। मदरसा रजा-ए-मुस्तफा तुर्कमानपुर, जामिया अल इस्लाह एकेडमी नौरंगाबाद, गोरखपुर व सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफरा में चालीस हदीसों की विशेष कार्यशाला के 5वें सप्ताह में नमाज, रोजा, जकात और मां-बाप के हुकूक के बारे में बताया गया।
मुख्य वक्ता हाफिज रहमत अली निजामी ने कहा कि नमाज इस्लाम धर्म के पांच स्तंभों में से दूसरा सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है। यह मुसलमानों द्वारा दिन में पांच निर्धारित समय पर अदा की जाने वाली एक अनिवार्य इबादत है। नमाज अल्लाह के साथ संवाद कायम करने का बहुत ही बेहतरीन तरीका है। दिन में पांच बार निश्चित समय पर नमाज अदा करने से मुसलमानों में अनुशासन और समय प्रबंधन की भावना पैदा होती है। नमाज बुराईयों से रोकती है। नमाज अदा करने से शारीरिक और मानसिक लाभ होता है। वहीं रोजा, इस्लाम धर्म में रमजान के पाक माह के दौरान रखा जाने वाला उपवास है, जिसमें मुसलमान सूर्योदय से सूर्यास्त तक खाने-पीने और अन्य सांसारिक बुराइयों से दूर रहते हैं। यह आत्म-संयम, धैर्य और अल्लाह के प्रति समर्पण का एक अभ्यास है, और यह इस्लाम के पांच स्तंभों में से है। रोजा सिर्फ शारीरिक भूख-प्यास नहीं है, बल्कि यह बुराइयों से रुकने और अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखने का एक जरिया है। जकात, इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। जकात देने से व्यक्ति की संपत्ति और आत्मा शुद्ध होती है। यह समाज में धन के पुनर्वितरण में मदद करता है, असमानता और गरीबी को कम करता है।
अध्यक्षता करते हुए कारी मुहम्मद अनस कादरी नक्शबंदी ने कहा कि इस्लाम में मां-बाप का बहुत ऊंचा मकाम है और यह बच्चों के लिए सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्यों में से एक है। कुरआन और हदीस दोनों में माता-पिता के साथ दया, सम्मान और आज्ञाकारिता से पेश आने पर बहुत जोर दिया गया है। बच्चों को हर मामले में अपने माता-पिता की आज्ञा माननी चाहिए। मां-बाप से कभी भी ऊंची आवाज में बात नहीं करनी चाहिए। उनके प्रति हमेशा सम्मानजनक व्यवहार और दया दिखानी चाहिए। जब मां-बाप बूढ़े हो जाएं तो उनकी देखभाल करना और उनकी जरूरतों को पूरा करना बच्चों का कर्तव्य है। मां-बाप के हुकूक को पूरा करना अल्लाह की इबादत का एक हिस्सा और जन्नत में प्रवेश का एक साधन है।
अंत में दरूदो सलाम पढ़कर अमन व शांति की दुआ मांगी गई। कार्यशाला में वरिष्ठ शिक्षक आसिफ महमूद, नेहाल अहमद, शहबाज सिद्दीकी, शीराज सिद्दीकी, ताबिश सिद्दीकी, मुजफ्फर हसनैन रूमी, नौशीन फातिमा, शबनम, नूर सबा, शीरीन आसिफ, शीरीन सिराज, अफसाना, शिफा खातून, फिजा खातून, सना फातिमा, असगरी खातून, यासमीन, आयशा, फरहत, नाजिया, तानिया सहित तमाम लोगों ने शिरकत की।