बाराचट्टी (सु.): किसके सिर सजेगा ताज
नितीश के 'कथित विकास' के भरोसे एनडीए प्रत्याशी ज्योति मांझी
विरासत के भरोसे राजद की तनुश्री
रिपोर्ट: विनोद विरोधी
गया:बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए नामांकन की प्रक्रिया समाप्त होने के बाद प्रत्याशियों के नाम स्पष्ट हो गए हैं। कभी घोर नक्सल क्षेत्र के रूप में विख्यात बाराचट्टी विधानसभा क्षेत्र वर्तमान में सुशासन सरकार की मुखिया रहे नीतीश कुमार के 'कथित विकास' के रूप में सामने आया है।वर्तमान विधानसभा में पूर्व सीएम व हम पार्टी के सुप्रीमो जीतनराम मांझी की समधन व बाराचट्टी की निवर्तमान विधायिका ज्योति मांझी पर एनडीए ने दोबारा भरोसा जताया है। ज्योति मांझी 2010 एवं 2020 के चुनाव में अपनी जीत दर्ज की है। गत बिहार विधानसभा के चुनाव में ज्योति ने राजद के पूर्व विधायिका समता देवी को महज साढ़े छह हजार मतों से पराजित किया था। तब समता देवी के पराजय के पीछे विकास के प्रति उदासीन रवैया के कारण मतदाताओं में असंतोष की बात थी। गौरतलब है कि समता देवी पत्थर तोड़ने वाली महिला व बाराचट्टी का प्रतिनिधित्व करने वाली विधायिका व गया के सांसद रहे दिवंगत भगवती देवी की बेटी है। और 2003 के उपचुनाव में एवं 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में यहां की प्रतिनिधित्व कर चुकी है। वर्ष 1995 से लेकर अब तक कमोबेश इन्हीं दो परिवारों का क्षेत्र पर कब्जा रहा है और इस बार भी यही स्थिति बनी है। फर्क सिर्फ इतना है कि एनडीए प्रत्याशी ने वर्तमान विधायिका ज्योति मांझी के मुकाबले राजद ने नामांकन के अंतिम क्षण में समता देवी का टिकट काटकर उनके ही बेटी तनुश्री को दी है। यानि ज्योति का मुकाबला अब दिवंगत भगवती देवी की नतिनी व पूर्व विधायिका समता देवी की बेटी से होगी। अब सवाल है मतदाता किसके सिर पर ताज पहनाएंगी ।एक ओर निवर्तमान विधायिका ज्योति मांझी का क्षेत्र में कोई खास उपलब्धि नहीं मानी जा रही है यहां की प्रमुख सड़कें व पुल- पुलियों की स्थिति बदतर है बरंडी बराज परियोजना सरीखे परियोजना ठंढ़े बस्ते में बंद है। उच्च शिक्षा के लिए यहां व्यावसायिक व डिग्री कॉलेज की कोई व्यवस्था नहीं है। गरीबी के कारण लोगों का रोजगार के लिए अन्य राज्यों में पलायन जारी है। हालांकि चुनाव के नजदीक आने की आशंका को देखते हुए ज्योति मांझी ने आनन-फानन में क्षेत्र की 19 सड़कों का शिलान्यास भी कर चुकी है। लेकिन इसे धरातल पर कब और कैसे होगा या आने वाला समय बताएगा? क्योंकि समस्याओं से जूझ रहे आम मतदाताओं के बीच यह सवाल बना है।वैसे सूबे में सुशासन द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य व ऊर्जा के क्षेत्र में किए गए 'कथित विकास'कार्यों के भरोसे ज्योति मांझी चुनाव मैदान में आई है, जिसे वह मतदाताओं के बीच भुनाने में भी जुटी है। जातीय समीकरण के आधार पर भी अगर देखा जाए तो इनके आधार वोट मांझी, कुशवाहा, अति पिछड़ा एवं स्वर्ण मतदाता माने जाते हैं,लेकिन उनके क्रियाकलापों से इन समुदायों में भी उनके प्रति असंतोष व्याप्त है। इधर इंडिया महागठबंधन की प्रत्याशी रहे तनुश्री एक नए चेहरे के रूप में मतदाताओं के सामने आई है। युवा व पढ़ी-लिखी होने के बावजूद क्षेत्र के मतदाता इससे अनजान हैं। लेकिन दिवंगत भगवती देवी की नतिनी और समता देवी की बेटी के रूप में इसकी पहचान है। यानि कि पूर्व के विरासत के भरोसे राजद ने तनुश्री पर भरोसा जताया है। समस्याओं के मकड़जाल में उलझे बाराचट्टी की मतदाता इस बार नए प्रत्याशी के तलाश में थे, जो क्षेत्र की समस्याओं को मजबूती के साथ सदन में रख सके।किंतु जमीनी स्तर पर कोई बदलाव नहीं हो सका है। अगर प्रबुद्ध मतदाताओं की मानें ,तो सत्ता का स्वाद चख चुके सत्तापक्ष अथवा विपक्षी गठबंधन ने भी बाराचट्टी की समस्याओं के प्रति कोई भी रुचि नहीं दिखाई है। जिसका खामियाजा इन दोनों गठबंधनों को भी भुगतना होगा। विपक्ष में रहते हुए भी राजद के पूर्व विधायिका समता देवी ने वैसा कोई जुझारू आंदोलन नहीं खड़ा कर सकी ताकि समस्याओं का निदान हो सके। इसी कड़ी में प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज ने भी रिटायर इंजीनियर हेमंत कुमार को चुनावी अखाड़े में उतारा है, जो इन दोनों के बीच का रास्ता तलाशने के फिराक में है।जिन्होंने हाल ही में काफी ताम-झाम के साथ अपना नामांकन दाखिल किया है,लेकिन एनडीए और इंडिया के जंग में कितना कामयाब हो पाएगा यह तो आने वाला समय बतायेगा।हालांकि चुनावी समर में बाराचट्टी (सु.) विधानसभा क्षेत्र से कुल 11 उम्मीदवार मैदान में हैं इनमें लोक जनशक्ति पार्टी से शिवनाथ कुमार निराला,बहुजन समाज पार्टी से रामचंद्र दास, सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया से संजय मंडल, पीपुल्स पार्टी ऑफ इंडिया डेमोक्रेटिक से मनोज पासवान ,निर्दलीय अर्जुन भुईयां ,इंद्रदेव पासवान, राहुल कुमार तथा विनय पासवान का नाम शामिल हैं,जो किसका खेल बिगड़ेंगे अथवा बनाएंगे फिलवक्त कहना मुश्किल है ।लेकिन इतना तय है कि एनडीए और इंडिया गठबंधन दोनों दलों के प्रतिनिधियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।