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Mon, 07 Jul 2025 09:47 AM

देश में फैलाए जा रहे नफरत के माहौल पर जताई चिंता...

धार्मिक व उपासना स्थल की स्थिति जो 15 अगस्त 1947 के समय थी, उसे यथावत रखने का सुप्रीम कोर्ट से आग्रह

वसीम अकरम कुरैशी

जयपुर, राजस्थान

उत्तर प्रदेश के संभल व अजमेर दरगाह मामले को लेकर सोमवार को यहां जॉइंट कमेटी तहफ्फुज ए औकाफ राजस्थान कमेटी ने देश में फैलाए जा रहे नफरत के माहौल और गंगा जमनी तहजीब को आघात पहुंचाने वाले लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। वहीं धार्मिक मामलों में उपासना स्थल अधिनियम 1991 के सेक्शन 3 के अनुसार किसी भी धार्मिक व उपासना स्थल की स्थिति जो 15 अगस्त 1947 के समय थी, उसे बदला नहीं जा सकता, पर अमल कराने का सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है।

 कन्वीनर मुहम्मद नाजिमुद्दीन ने कहा कि गत कुछ वर्षों से देश के विभिन्न भागों में साम्प्रदायिक संगठनों द्वारा धार्मिक स्थलों को क्षति पहुंचाने का घिनौना कृत्य करके देश के आपसी सद्भाव को समाप्त करने की कोशिश की जा रही है। मस्जिदों को मंदिर बता कर अदालतों में झूठे केस दायर करके सर्वे के नाम पर मस्जिदों के स्टेटस को समाप्त करने का प्रयत्न किया जा रहा है। पूर्व में ज्ञानवापी मस्जिद के नीचे मंदिर होने के बहाने सर्वे करा कर देश के माहौल को बिगाड़ने की कोशिश की गई। हाल ही में भारत सरकार द्वारा वक्फ संशोधन बिल 2024 लाकर मुस्लिम वक्फ जायदादों में दखलअंदाजी करने का कानूनी रास्ता निकालने की कोशिश की जा रही है।

वहीं जमीयत उलेमा ए हिन्द के प्रदेश उपाध्यक्ष हाफिज मंजूर अली खान ने कहा कि हाल ही में उत्तर प्रदेश के सम्भल में इसी प्रकार की घटना को अंजाम देने की कोशिश की गई। जिसमें मस्जिद को बचाने, अपने हक की आवाज उठाने एवं विरोध-प्रदर्शन करने के दौरान पांच निर्दोष नोजवानों की जान चली गई।

       संविधान विरुद्ध याचिकाएं स्वीकार नहीं हो : सआदत

एपीसीआर के प्रदेशाध्यक्ष एडवोकट सआदत अली ने कहा कि राजस्थान के अजमेर में स्थित सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह में शिव मंदिर होने के नाम पर निचली अदालत में याचिका दायर करना और अदालत द्वारा उक्त याचिका को स्वीकार करना न केवल चिंताजनक है बल्कि संविधान के विरुद्ध भी है। उपासना स्थल अधिनियम 1991 के सेक्शन 3 के अनुसार किसी भी धार्मिक व उपासना स्थल की स्थिति वही रहेगी जो 15 अगस्त 1947 के समय थी और उसे बदला नहीं जा सकता। किसी भी व्यक्ति को किसी भी धार्मिक स्थल को बदलने या उसके खिलाफ याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं है। अत: अजमेर दरगाह में मंदिर होने की बात कहना और निचली अदालत द्वारा दरगाह परिसर में सर्वे कराने की याचिका को स्वीकार करना उपासना स्थल अधिनियम 1991 के विरुद्ध है।

         विकास में आएगी रुकावट : आरको

वहीं दलित-मुस्लिम एकता मंच के प्रदेश अध्यक्ष अब्दुल लतीफ आरको ने कहा कि अजमेर दरगाह में मंदिर होने की याचिका स्वीकार करना प्रदेश में माहौल खराब करने की कोशिश है, जिससे सम्प्रदायों के बीच बदअमनी व तनाव बढ़ेगा और देश व प्रदेश की तरक्की में भी रूकावट पैदा होगी। इस मौके पर एसडीपीआई के डॉ. शहाबुद्दीन खान, एडवोकेट मुजम्मिल इस्लाम सहित अन्य संगठनों के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे।

            ये है मुख्य मांगें

 अजमेर दरगाह व अन्य धार्मिक स्थलों के साथ छेड़छाड़ करने पर तुरंत रोक लगाई जाए तथा पूर्व से चले आ रहे किसी भी धार्मिक स्थल की स्थिति को यथावत रखा जाए।

सुप्रीम कोर्ट निचली अदालतों को निर्देश दें कि अनावश्यक याचिकाओं को स्वीकार नहीं किया जाए तथा उपासना स्थल अधिनियम1991 की पूर्ण रूप से पालना की जाए।

सम्भल में हुई घटना की न्यायिक जांच कराई जाए एवं पांच बेकुसूर युवकों पर गोली चलाने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ सख़्त एक्शन लिया जाए।

मजलूमों की पैरवी कर उनके इंसाफ के लिए संघर्ष करने वाले सामाजिक

कार्यकर्ताओं और मानव अधिकार संगठन के राष्ट्रीय महासचिव नदीम खान को निशाना बनाते हुए दिल्ली पुलिस ने जो कार्रवाई की है वह निंदनीय है। इस तरह की कार्रवाई पर रोक लगाई जाए।

जो लोग देश में नफरत व धार्मिक उन्माद फैला कर अशांति फैलाना चाहते है उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।

Karunakar Ram Tripathi
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