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धार्मिक / Jul 15, 2024

कर्बला के शहीदों की याद में लबों पर जारी 'या हुसैन' की सदा।

सैय्यद फरहान अहमद

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।

मुहर्रम की 8वीं तारीख़ को मस्जिदों व घरों में हज़रत सैयदना इमाम हुसैन व उनके जांनिसारों की याद में महफिलों का दौर जारी रहा। मस्जिदों, घरों व इमाम चौकों पर फातिहा ख्वानी हुई। उलमा किराम ने ‘शहीद-ए-आज़म इमाम हुसैन’ व कर्बला के शहीदों की कुर्बानियों पर तकरीर की। जिसे सुनकर अकीदतमंदों की आंखें नम हो गईं और लबों से 'या हुसैन' की सदा जारी हुई।

सोमवार को जामा मस्जिद रसूलपुर में मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने कहा कि इमाम हुसैन ने दीन-ए-इस्लाम की खातिर सब कुछ कुर्बान कर दिया लेकिन जुल्म करने वालों के आगे सिर नहीं झुकाया। इमाम हुसैन ने दीन-ए-इस्लाम का झंडा बुलंद कर नमाज़, रोजा, अज़ान व दीन-ए-इस्लाम के तमाम कवानीन की हिफाजत की। 

मकतब इस्लामियात चिंगी शहीद इमामबाड़ा तुर्कमानपुर में हाफिज रहमत अली निजामी ने कहा कि कर्बला से हक़ की राह में कुर्बान हो जाने का सबक मिलता है। कर्बला के शहीदों की कुर्बानियों से ताकतवर से ताकतवर के सामने हक़ के लिए डटे रहने का जज्बा पैदा होता है। यदि आपको इमाम हुसैन से सच्ची मुहब्बत है तो उनके नक्शे कदम पर चलने की पूरी कोशिश कीजिए।

नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर में मौलाना असलम ने कहा कि जो लोग अल्लाह की राह में अपनी जान कुर्बान कर देते हैं वह शहीद हो जाते हैं और शहीद कभी नहीं मरता बल्कि वह ज़िंदा रहता है। इमाम हुसैन व उनके जांनिसार आज भी ज़िंदा हैं। 

गाजी मस्जिद गाजी रौजा में मुफ्ती-ए-शहर अख्तर हुसैन ने कहा कि पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया हसन और हुसैन दोनों दुनिया में मेरे दो फूल हैं। पैग़ंबरे इस्लाम से पूछा गया कि अहले बैत में आपको सबसे ज्यादा कौन प्यारा है? तो आपने फरमाया हसन और हुसैन। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत फातिमा से फरमाते थे कि मेरे पास बच्चों को बुलाओ, फिर उन्हें सूंघते थे और अपने कलेजे से लगाते थे।

गौसिया जामा मस्जिद छोटे काजीपुर में मौलाना मोहम्मद अहमद निजामी ने कहा कि कर्बला के मैदान में जबरदस्त मुकाबला हक़ और बातिल के बीच शुरू हुआ। तीर, नेजा और तलवार के बहत्तर ज़ख्म खाने के बाद इमाम हुसैन सजदे में गिरे और अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए शहीद हो गए। 

बेलाल मस्जिद इमामबाड़ा अलहदादपुर में कारी शराफत हुसैन कादरी ने कहा कि हज़रत सैयदना इमाम हुसैन ने अज़ीम कुर्बानी पेश कर बातिल कुव्वतों को करारी शिकस्त दी। इमाम हुसैन व उनके जांनिसारों को सलाम जिन्होंने हक़ की आवाज़ बुलंद की और दीन-ए-इस्लाम को बचा लिया। करीब 56 साल पांच माह पांच दिन की उम्र शरीफ में जुमा के दिन मुहर्रम की 10वीं तारीख़ सन् 61 हिजरी में इमाम हुसैन इस दुनिया को अलविदा कह गए। साहबजादगाने अहले बैत (पैग़ंबरे इस्लाम के घर वाले) में से कुल 17 हज़रात इमाम हुसैन के हमराह हाजिर होकर रुतबा-ए-शहादत को पहुंचे। कुल 72 अफराद ने शहादत पाईं। यजीदी फौजों ने बचे हुए लोगों पर बहुत जुल्म किया। 

मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक में मुफ्ती मेराज अहमद कादरी ने कहा कि हज़रत सैयदना इमाम हुसैन ने हमें पैग़ाम दिया कि जो बुरा है उसकी बुराई दुनिया के सामने पेश करके बुराई को खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए चाहे जिस चीज की कुर्बानी देनी पड़े, ताकि दुनिया में जो अच्छी सोसाइटी के ईमानदार लोग हैं वह अमनो-अमान के साथ अपनी ज़िंदगी गुजार सकें। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान की दुआ मांगी गई। शीरीनी बांटी गई। वहीं गौसे आजम फाउंडेशन ने शहर में कई जगहों पर अकीदतमंदों में लंगरे हुसैनी बांटा। लंगर बांटने में फाउंडेशन के जिलाध्यक्ष समीर अली, मो. फैज, मो. जैद, रियाज़ अहमद, अमान अहमद, मो. शारिक, मो. जैद कादरी, एहसन खान, अली गजनफर शाह, अब्दुर्रहमान आदि ने महती भूमिका निभाई। 

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Jr. Seraj Ahmad Quraishi
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