सूर्योपासना भक्तों के अटल आस्था का प्रतीक।
सूर्योपासना प्राचीन परंपरा, लोक पर्व छठ अटूट आस्था का प्रतीक
छठ महापर्व
सीमा भारद्वाज
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश ।
सूर्यषष्ठी छठ सूर्योपासना का पर्व है। लोक आस्था के महापर्व छठ लोकप्रिय पर्व बना है। अटूट अटल आस्था से किया जाने वाला पर्व में मनोकामनाओं की पूर्ति से विश्वास की अनुपम परंपरा कायम है। प्रकृति के महापर्व को लेकर अनेक कथाएं प्रचलित है। लोक कल्याण एवं अभिष्ठ फल प्राप्ति के लिए सूर्योपासना प्राचीन काल से चली आ रही है।
कार्तिक शुक्ल षष्ठी छठ की छटा हर युग में मिलती है। सतयुग में पूजन का जहां वर्णन मिलता है, वहीं त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने माता सीता के साथ व्रत रखकर पूजन किया। इसी दिन गायत्री का जन्म व गायत्री मंत्र का विस्तार माना जाता है। माता कुंती द्वारा सूर्य उपासना व महाराजा कर्ण के सूर्य पूजन, महाभारत काल के दौरान द्रौपदी द्वारा वनवास में राजपाट की पुन:प्राप्ति व पुत्र कामना के लिए सूर्योपासना का वर्णन मिलता है। भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना किया था। अगले दिन सप्तमी को उगते सूर्य की पूजा की और आशीर्वाद प्राप्त किया। एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ की शुरुआत महाभारत काल में हुई। महाभारत काल में ही द्रौपदी के भी सूर्य उपासना करने का उल्लेख है जो अपने परिजनों के स्वास्थ्य और लंबी उम्र की कामना के लिए नियमित रूप से यह पूजा करती थी। प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने विवाह से कर्ण के रूप में पुत्र दिया था। सूर्यपुत्र कर्ण ने यह पूजा करते थे। कर्ण अंग प्रदेश यानी वर्तमान बिहार के भागलपुर के राजा थे। कर्ण घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे। कृपा से वह परम योद्धा बना। इसी को लेकर छठ में आज भी अर्घ्य देने की परंपरा है।
माता दुर्गा, राधा, लक्ष्मी, सरस्वती और सावित्री ये पांच देवियां संपूर्ण प्रकृति कहलाती हैं। इन्हीं के प्रधान अंश को माता देवसेना कहते हैं। प्रकृति देवी का छठवां अंश होने के कारण माता देवसेना को षष्ठी माता के नाम से जाना जाता है। मां संसार के सभी संतानों की जननी और रक्षक हैं। सूर्योपासना सदियों से चली आ रहा है। शाक्यद्विपी ब्राह्मणों को सूर्य पूजा के विशेषज्ञ होने के कारण राजाओं ने आमंत्रित किया। ऋग्वेद में पूजा का महात्म्य मिलता है। आदि शंकराचार्य ने प्रकृति पूजा को प्रेरित किया था। यह व्रत षष्ठी युक्त सप्तमी पर किया जाता है। षष्ठी तिथि की स्वामिनी षष्ठी माता व सप्तमी के स्वामी भगवान सूर्य नारायण