नेपाल प्रधानमंत्री के बयान पर मुस्लिम समुदाय आक्रोशित, ‘भ्रामक बातें तुरंत वापस ली जाएँ’ - जाकिर हुसैन
सेराज अहमद कुरैशी
काठमांडू, नेपाल।
प्रधानमंत्री सुशीला कार्की का एक सार्वजनिक बयान सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद नेपाली मुस्लिम समुदाय ने कड़ा विरोध जताया है। पूरा वीडियो सामने न आकर केवल ‘एडिटेड’ जैसा दिखने वाला यह क्लिप पूरे दिन सोशल मीडिया में तेजी से फैलता रहा। प्रमुख मीडिया संस्थानों ने भी इस सामग्री को प्रसारित किया, और प्रधानमंत्री कार्यालय की चुप्पी के कारण इसे ‘प्रधानमंत्री का आधिकारिक मत’ माना जाने लगा। इसी आधार पर मुस्लिम समुदाय ने गंभीर आपत्ति दर्ज की है।
पूर्व राज्यमंत्री और संविधान सभा सदस्य मो. जाकिर हुसैन के अनुसार प्रधानमंत्री का बयान “निराधार, मनगढ़ंत, भ्रामक और सामाजिक सद्भाव को कमजोर करने वाला” है। उनका कहना है कि संवैधानिक पद पर बैठी व्यक्ति द्वारा किसी धर्म–समुदाय को निशाना बनाकर गलत तथ्य प्रस्तुत करना शर्मनाक और अनुचित है।
‘उद्देश्य क्या था?’ — मुस्लिम समुदाय का सवाल
वक्तव्य में कहा गया है कि पिछले कुछ महीनों से देश के संवेदनशील माहौल के बीच प्रधानमंत्री का ऐसा बयान देना ही संदेहास्पद है।
हुसैन लिखते हैं:
“हिंदू–मुस्लिम मुद्दों में सही–गलत का निर्णय करना प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी नहीं है। इस्लाम, मुसलमानों और महिलाओं से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों को उलटकर पेश करना देश की धार्मिक सहिष्णुता को चोट पहुँचा सकता है।”
प्रधानमंत्री के ‘अन्याय का समाधान आर्य में है, मुसलमानों में नहीं’ जैसे आशय वाले बयान ने मुस्लिम समुदाय पर अनुचित आरोप लगाया है और इससे समाज में अनावश्यक तनाव पैदा हो सकता है।
‘किस मुस्लिम देश में महिलाओं को ज़िंदा दफ़न किया जाता है?’
प्रधानमंत्री की टिप्पणी को इतिहास के विरुद्ध बताते हुए हुसैन ने प्रतिप्रश्न किया:
“कौन–सा मुस्लिम देश है जहाँ महिलाओं को ज़िंदा दफ़न किया जाता है? उल्टे, ज़िंदा जलाने, बलात्कार के बाद हत्या, या अन्य घिनौने अपराध तो हमारे अपने समाज में कई बार हुए हैं।”
उनके अनुसार इस्लाम से पहले अरब में प्रचलित अनेक अमानवीय परम्पराओं — जैसे लड़कियों को जीवित दफन करना, सती प्रथा, दास–दासी पर अत्याचार — इन सभी का अंत पैग़म्बर मुहम्मद ने किया था।
हुसैन ने यह भी याद दिलाया कि भारत में भी मुस्लिम शासकों ने सती प्रथा समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने प्रधानमंत्री के बयान को “अध्ययनहीन और पूर्वाग्रहपूर्ण” बताया।
‘महिलाओं को अधिकार न देने की बात पूरी तरह गलत’
वक्तव्य के अनुसार आज के मुस्लिम समाज में महिलाओं को शिक्षा से वंचित करने का दावा तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है।
“अरब देशों के सरकारी और निजी कार्यालयों में महिलाओं की भागीदारी उल्लेखनीय है। नेपाल में भी मुस्लिम बालिकाओं की स्कूल उपस्थिति अन्य समुदायों से कम नहीं है।”
धार्मिक सद्भाव बिगाड़ने का प्रयास अस्वीकार्य
हुसैन ने कहा कि नेपाल की धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक सद्भाव विश्व में एक अनुपम सांस्कृतिक मूल्य के रूप में माना जाता है, और इसे कमजोर करने वाला कोई भी बयान अस्वीकार्य है।
उन्होंने स्पष्ट कहा:
“नेपाली मुस्लिम समुदाय को हिंदू या किसी भी अन्य धर्म से कोई समस्या नहीं। हमारा समाज सहअस्तित्व, सद्भाव और परस्पर सम्मान पर आधारित है।”
कैबिनेट में मुस्लिम प्रतिनिधित्व क्यों नहीं?
यदि प्रधानमंत्री को सचमुच मुसलमानों और महिलाओं के अधिकारों की चिंता है, तो संविधान द्वारा परिभाषित मुस्लिम समुदाय के पुरुष या महिला को मंत्रिमंडल में शामिल क्यों नहीं किया गया — यह सवाल भी उठाया गया।
हुसैन ने पूछा:
“क्या देश में कोई भी योग्य नेपाली मुसलमान मंत्री बनने के लायक नहीं है?”
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‘भ्रामक बयान वापस लें’ — मुस्लिम समुदाय की मांग।
वक्तव्य के अंत में हुसैन ने प्रधानमंत्री सुशीला कार्की से उक्त बयान तुरंत वापस लेने और संवेदनशील विषयों पर जिम्मेदारी, अध्ययन और तथ्यों के आधार पर ही टिप्पणी करने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय देश की शांति, स्थिरता और सद्भाव के लिए प्रतिबद्ध है।
उनके शब्दों में:“धार्मिक आस्था को ठेस पहुँचाना किसी भी तरह उचित नहीं। देश की कार्यकारी प्रमुख से ऐसा बयान आना निंदनीय है।”