इमाम हुसैन ने शहादत देकर दीन-ए-इस्लाम को बचा लिया - उलमा किराम
मस्जिदों में जारी ‘जिक्रे शोह-दाए-कर्बला’ महफिल
सैय्यद फरहान अहमद
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
छठवीं मुहर्रम को मस्जिदों, घरों व इमामबाड़ों में ‘जिक्रे शोह-दाए-कर्बला’ महफिलों का दौर जारी रहा। कुरआन ख्वानी व फातिहा ख्वानी हुई।
मकतब इस्लामियात चिंगी शहीद इमामबाड़ा तुर्कमानपुर में नायब काजी मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने कहा कि इमाम हुसैन ने शहादत देकर दीन-ए-इस्लाम व मानवता को बचा लिया। इमाम हुसैन कल भी ज़िंदा थे, आज भी ज़िंदा हैं और सुबह कयामत तक ज़िंदा रहेंगे। हुसैन ज़िंदा हैं हमारी महफ़िल में, हुसैन ज़िंदा हैं हमारी नमाज़ों में, हुसैन ज़िंदा हैं हमारी अज़ानों में, हुसैन ज़िंदा हैं हमारी सुबह में, हमारी शामों में। कत्ले हुसैन असल में मरगे यजीद है, इस्लाम ज़िंदा होता है हर कर्बला के बाद।
रसूलपुर जामा मस्जिद में मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने कहा कि इंसानियत और दीन-ए-इस्लाम को बचाने के लिए पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नवासे हज़रत इमाम हुसैन ने अपने कुनबे और साथियों की कुर्बानी कर्बला के मैदान में दी।
गाजी मस्जिद गाजी रौजा में मुफ्ती-ए-शहर अख्तर हुसैन मन्नानी ने कहा कि कर्बला के मैदान में हज़रत फातिमा के दुलारे इमाम हुसैन जैसे ही फर्शे जमीन पर आए कायनात का सीना दहल गया। इमामे हुसैन को कर्बला के तपते हुए रेगिस्तान पर दीन-ए-इस्लाम की हिफाजत के लिए तीन दिन व रात भूखा प्यासा रहना पड़ा। अपने भतीजे हज़रत कासिम की लाश उठानी पड़ी। हज़रत जैनब के लाल का गम बर्दाश्त करना पड़ा। छह माह के नन्हें हज़रत अली असगर की सूखी जुबान देखनी पड़ी। हज़रत अली अकबर की जवानी को खाक व खून में देखना पड़ा। हज़रत अब्बास अलमबदार के कटे बाजू देखने पड़े, फिर भी हज़रत इमाम हुसैन ने दीन-ए-इस्लाम को बुलंद करने के लिए सब्र का दामन नहीं छोड़ा।
नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर में मौलाना असलम रज़वी ने कहा कि हज़रत इमाम हुसैन का काफिला 61 हिजरी को कर्बला के तपते हुए रेगिस्तान में पहुंचा। इस काफिले के हर शख़्स को पता था कि इस रेगिस्तान में भी उन्हे चैन नहीं मिलने वाला और आने वाले दिनों में उन्हें और अधिक परेशानियां बर्दाश्त करनी होंगी। बावजूद इसके सबके इरादे मजबूत थे। अमन और इंसानियत के ‘मसीहा’ का यह काफिला जिस वक्त धीरे-धीरे कर्बला के लिए बढ़ रहा था, रास्ते में पड़ने वाले हर शहर और कूचे में जुल्म और प्यार के फर्क को दुनिया को बताते चल रहा था। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो शांति की दुआ मांगी गई। शीरीनी बांटी गई।