परमात्मा का निवास स्थान ही परमधाम, भगवान ब्रह्मा रजोगुण एवम् विष्णु तपोगुण के प्रतीक हैं -- स्वामी ईश्वर दास ब्रह्मचारी
रिपोर्ट - धनंजय शर्मा
बेल्थरारोड (बलिया)।
स्थानीय क्षेत्र के सर्वेश्वर मानस मंदिर चैकिया मोड़ के तत्वावधान में सोमवार से चल रही पंच कुण्डीय अद्वैत शिव शक्ति महायज्ञ एवं हनुमान महोत्सव के मौेके पर दूसरे दिन मंगलवार को अद्वैत शिवशक्ति परमधाम डूहां के परिवज्रकाचार्य स्वामी ईश्वर दास ब्रह्मचारी ने अध्यात्म की चर्चा करते हुए कहा कि भगवान ब्रह्मा रजोगुण एवं विष्णु तमोगुण के प्रतीक हैं। परमात्मा का निवास स्थान परमधान है।
उन्होने कहा कि हम सभी का जीव ब्रह्मांड को छोड़कर मृत्युलोक भू लोक में आया। जहां माया में फंस कर उसकी सुधि नही रह जाती। परमधाम हम सभी का निजधाम है। भगवान शंकर के आयु पर्यन्त माता पार्वती को 108 बार मरना पड़ता है व जन्म लेना पड़ता है। इस लिए इस सिद्धान्त से उन्हे स्थाई परमात्मा नही कह सकते। 14 इन्द्र मरते व जन्म लेते है तो ब्रह्मा का एक दिन बीत जाता है। आज के समय में 12 घंटे के लिए सूर्य का उदय होता है और शाम को अस्त होता है, वह ब्रह्मा का सूर्य नही है। यह मृत्युलोकवासियों का सूरज है। किन्तु जब ब्रह्मा का सूरज उगता है और 12 घंटे बाद अस्त होता है तो 4 अरब 32 करोड़ वर्ष मनुष्यों का बीत जाता है। जिसे वह एक दिन कहा जाता है। हम सभी का जीव बह्मा के शरीर में समाहित हो जाता है, जो एक कमल का रुप लेता है और वह भगवान विष्णु की नाभि में समाहित हो जाता है। ब्रह्मा का कारक तत्व में लीन हो जाते है तो भगवान विष्णु का एक दिन बीत जाता है। यह शिव पुराण कथा में विस्तारित है। यही है जीव की अपनी जीवनशैली, जिस पर हमारा जीवन आधारित है।
वृन्दावन से पधारे पं. प्रवीण कृष्ण जी महाराज ने कहा कि भगवान शिव ने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि दुनिया में कही तुम्हारा कोई न मंदिर होगा और न तुम्हारी पूजा होगी। यह श्राप भगवान शिव ने इस लिए दिया था कि विष्णु व ब्रह्मा में हम बड़े तो हम बड़े, को लेकर लड़ाई हो गयी। यह लड़ाई बढ़कर आकास में तक चली गयी। फिर इस दौरान एक तेज पूंज सामने आ गया। ब्रह्मा ने केतकी से विष्णु के समक्ष झूठी गवाही कराई, जिससे भगवान शिव रुष्ट होकर झूठी गवाही कराने पर श्राप दे दिया था। इस लिए दुनिया में सभी देवताओं के जहां तहां मंदिर मिल जाते है किन्तु ब्रह्मा जी के मंदिर न मिलते हैं और न उनकी कहीं पूजा दिखती है। उन्होने कहा कि जीवन में कभी प्रतिष्ठा की लड़ाई किसी को नही लड़नी चाहिए। उन्होने कहा कि अरुणांचल में पहला भगवान शिवलिंग स्थापित हुआ, और हम महाशिव रात्रि का पर्व विधि विधान के साथ मनाते हैं।
इस कथा के अंत में सभी कथा श्रोताओं ने भगवान की आरती में भाग लिया, फिर महाप्रसाद ग्रहण कर अपने घरों को रवाना हुए।