युवाओं को सच्चे सूफ़ियों का संदेश आत्मसात करना चाहिए - उलमा किराम
सैय्यद फरहान अहमद
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
आला हज़रत गली तुर्कमानपुर में जलसा हुआ। तिलावत हाफिज अली अकबर ने की। नात हाफिज सैफ अली व कासिद रजा इस्माईली ने पेश की। संचालन हाफिज अशरफ रजा ने किया। मकतब इस्लामियात के बच्चों मो. रय्यान रजा, मो. उजैन रजा, अफीना खातून, मो. आरिश, माहिरा खातून ने किरात, नात, तकरीर कर लोगों का दिल जीत लिया।
मुख्य वक्ता मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने कहा कि युवाओं को सच्चे सूफ़ियों व उलमा किराम के संदेशों को समझना चाहिए और आत्मसात करना चाहिए। सच्चे सूफ़ियों व उलमा किराम की परम्परा स्व से पूर्व समाज, ख़ुद से पहले आप और इच्छा से पूर्व कल्याण की रही है। यह बात राष्ट्र निर्माण और समाज के कल्याण पर भी लागू होती है। उन्हीं सूफ़ियों में शैख अब्दुल कादिर जीलानी का नुमाया नाम है। आपका लकब मोहिउद्दीन है, जिसका अर्थ दीन को ज़िंदा करने वाला है। आप जब दस साल के हुए और मदरसे में पढ़ाई करने जाया करते थे तो फरिश्ते आते और आपके लिए मदरसे में बैठने की जगह बनाते थे। फरिश्ते दूसरे बच्चों से कहते थे अल्लाह के वली के लिए बैठने की जगह दो।
अध्यक्षता करते हुए नायब काजी मुफ्ती मो. अजहर शम्सी ने कहा हज़रत शैख अब्दुल कादिर जीलानी दीन-ए-इस्लाम का प्रचार करने के लिए बगदाद गए। आपने बगदाद में लोगों को दीन-ए-इस्लाम की बातें बताईं और चालीस सालों तक लगातार बहुत मजबूती से नेकी व दीन की बातों को फैलाते रहे। आपका बयान सुनने के लिए इंसानों के साथ जिन्नात भी आया करते थे।
विशिष्ट वक्ता कारी मो. अनस रजवी ने कहा कि हज़रत शैख अब्दुल कादिर जीलानी के पास बेशुमार इल्म था। जिसका फायदा दुनिया को मिला और दीन-ए-इस्लाम नये सिरे से ज़िंदा हुआ। शैख अब्दुल कादिर की पैदाइश रमजान महीने में हुई थी। जन्म के समय ही आप सेहरी से इफ्तार तक मां का दूध नहीं पीते। जिस तरह रोजेदार रोजा रखता है, उसी तरह आप मां का दूध केवल सेहरी व इफ्तार के वक्त पीते थे। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान की दुआ मांगी गई।