आमजन : कुर्बानी से बढ़ती है मुहब्बत व भाईचारगी।
सैय्यद फरहान अहमद
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
अल्लाह के नाम पर कुर्बानी देने का त्योहार सात जून को है। सात, आठ व नौ जून को परम्परागत तरीके से कुर्बानी अदा की जाएगी। मुस्लिम घरों में तैयारियां जारी है। मुस्लिम बुद्धिजीवियों की तरफ से साफ-सफाई का ख्याल रखने, भाईचारा व मुहब्बत बढ़ाने की अपील की जा रही है।
मुहल्ला धम्माल के रहने वाले खुर्शीद अहमद मून ने कहा कि कुर्बानी के इस त्योहार में मुहब्बत व भाईचारा बढ़ता है। कुर्बानी का गोश्त पास-पड़ोस, गरीब, फकीर मुसलमानों में जरूर बांटा जाए। साफ-सफाई अल्लाह तआला को पसंद हैं इसका हर मुसलमान को खास ख्याल रखना चाहिए। कुर्बानी की फोटो व वीडियो न बनाएं और न ही अपने कुर्बानी के जानवर की नुमाइश करें।
जमुनहिया बाग निवासी शिक्षक आसिफ महमूद ने कहा कि इस्लाम धर्म में कुर्बानी देना वाजिब है। पैगंबर हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम व पैगंबर हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम की कुर्बानी का कुरआन व हदीस से साबित सच्चा वाकया ईद-उल-अजहा पर्व की बुनियाद है। ईद-उल-अजहा पर्व शांति व उल्लास के साथ मनाएं। साफ-सफाई का खूब अच्छी तरह ख्याल रखें। सबके साथ अच्छे से पेश आएं। भाईचारे व मुहब्बत को आम करने की शिक्षा देती है कुर्बानी।
एडवोकेट मुहम्मद काशिफ एम. खान ने कहा कि ईद-उल-अजहा मुसलमानों का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है। इस मौके पर मुसलमान नमाज पढ़ने के साथ-साथ जानवरों की कुर्बानी देते हैं। इस्लाम धर्म के अनुसार कुर्बानी करना हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है, जिसे अल्लाह ने मुसलमानों पर वाजिब करार दिया है। अल्लाह को पैगंबर हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम व पैगंबर हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम की कुर्बानी की अदा इतनी पसंद आई कि हर मालिके निसाब पर कुर्बानी करना वाजिब कर दिया। वाजिब का मुकाम फर्ज से ठीक नीचे है। कुर्बानी की रवायत पहले जैसी आज भी कायम है।
नौरंगाबाद गोरखनाथ के बेलाल अहमद ने कहा कि क़ुर्बानी एक त्योहार ही नहीं है बल्कि रोजगार का बहुत बड़ा जरिया भी है। तीन दिन तक होने वाली कुर्बानी से जहां गरीब तबके को मुफ्त में गोश्त खाने को मिलता है वहीं मदरसा, पशुपालक, बूचड़-कसाई, पशुओं व चमड़े को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने वाले गाड़ी वालों, चारा व पत्ते बेचने वालों, रोटियां बनाने वाले होटलों एवं चमड़ा फैक्ट्रियों को काफी लाभ होता है। लाखों लोगों का रोजगार कुर्बानी से जुड़ा हुआ है।
जाहिदाबाद के नेहाल अहमद ने कहा कि खास जानवर को खास दिनों में कुर्बानी की नियत से जिब्ह करने को कुर्बानी कहते हैं। दीन-ए-इस्लाम में जानवरों की कुर्बानी देने के पीछे एक खास मकसद है। अल्लाह दिलों के हाल से वाकिफ है, ऐसे में अल्लाह हर शख्स की नियत को समझता है। जब बंदा अल्लाह का हुक्म मानकर महज अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी करता है तो उसे अल्लाह की रजा हासिल होती है। बावजूद इसके अगर कोई शख्स कुर्बानी महज दिखावे के तौर पर करता है तो अल्लाह उसकी कुर्बानी कबूल नहीं करता।
कुर्बानी के जानवरों में हिस्सा लेने के लिए तैयारी शुरु।
जहां कुर्बानी के लिए बकरे बिके रहे हैं वहीं बड़े जानवर (भैंस) में हिस्सा लेने के लिए भी तैयारी शुरु है। लोगों ने पेशगी रकम जमा करानी शुरु कर दी है। रहमतनगर के अली गजनफर शाह, अली अशहर, आसिफ व फैज मुस्तफाई ने बताया कि हर साल की तरह इस साल भी बड़े जानवर में प्रत्येक हिस्से के एवज में 3000, 3500 व 4000 रुपया लिया जा रहा है। कुर्बानी शरीअत के मुताबिक होगी। लोग कुर्बानी में अकीका भी करवा सकते हैं। इसी तरह अन्य तंजीमें व लोग कुर्बानी में हिस्सा लेने की अपील कर रहे हैं। मुहम्मद आजम ने बताया कि हर साल शहर में तीन दर्जन से अधिक स्थानों पर बड़े जानवरों की कुर्बानी तीन दिनों तक हर्षोल्लास के साथ होती चली आ रही है। एक भैंस में सात लोगों की तरफ से कुर्बानी दिए जाने का नियम है।