रोजा रखने से गुनाह माफ होते हैं - मुफ्तिया ताबिंदा
माह-ए-रमजान व ईद को लेकर तुर्कमानपुर में सजी महिलाओं की महफिल
मोहम्मद अनस कादरी
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
'माह-ए-रमजान व ईद में कैसे करें इबादत' विषय पर रविवार को मकतब इस्लामियात चिंगी शहीद इमाम चौक तुर्कमानपुर में महिलाओं की महफिल हुई। कुरआन-ए-पाक की तिलावत से महफिल का आगाज हुआ। मकतब की छात्राओं ने नात व मनकबत पेश की। मुख्य अतिथि मुफ्तिया ताबिंदा खानम अमजदी ने कहा कि रमजान की फजीलतों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है, मगर उसका बुनियादी सबक यह है कि हम सभी उस दर्द को समझें जिससे दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा रोजाना दो-चार होता है। जब हमें खुद भूख लगती है तभी हमें गरीबों की भूख का एहसास हो सकता है। रमजान के महीने में ही कुरआन-ए-पाक दुनिया में उतरा था, लिहाजा इस महीने में तरावीह के रूप में कुरआन-ए-पाक सुनना बेहद सवाब का काम है। रमजान का महीना हममें इतना तकवा (परहेजगारी) पैदा कर सकता है कि सिर्फ रमजान ही में नहीं बल्कि उसके बाद भी ग्यारह महीनों की ज़िन्दगी भी सही राह पर चल सके। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मशहूर फरमान है कि जिसने ईमान के साथ सवाब की नियत से यानी खालिस अल्लाह की खुशनूदी हासिल करने के लिए रोजा रखा उसके पिछले तमाम गुनाह माफ फरमा दिए जाते हैं।