किछौछा शरीफ में सालाना उर्स बहुत ही धूमधाम से मनाया गया।
अशरफपुर, अम्बेडकर नगर, उत्तर प्रदेश।
धरा धाम इंटरनेशनल परिवार और संराईज़ एजुकेशनल एंड वेलफेयर एसोसिएशन (SEWA) के संयुक्त तत्वाधान में अशरफपुर किछौछा शरीफ में हिंदुस्तान के प्रसिद्ध सूफी संत सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह के सालाना उर्स के मुबारक मौके पर कुल शरीफ की दुआओं में शामिल होकर तमाम अशरफुल मखलुकात की बेहतरी के लिए मुल्क में अमन ओ बहार व शांति के लिए खुसूसी दुआ की गई। इस मुबारक मौके पर हजरत की दरगाह पर चादर भी पेश की गई। माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश के सदस्य डॉक्टर एहसान अहमद ने कहा कि हज़रत का जन्म ईरान के सेमनान में हुआ था और विशेष रूप से चिश्ती पद्धति को आगे बढ़ाने में उन्होंने उल्लेखनीय योगदान दिया। इन संत ने बहुत यात्राएं की और लोगों तक शान्ति का सन्देश पहुँचाया। किछौछा दरगाह शरीफ एक छोटी पहाड़ी पर बना है, जो कि एक ताल से घिरा हुआ है। सम्पूर्ण परिसर संगमरमर, टाइल्स और कांच से सजाया गया है। साल भर हजारों की तादाद में श्रद्धालु भारत और दुनिया भर से इस दरगाह पर आते हैं।
संराईज़ कोचिंग सेंटर के डायरेक्टर मोहम्मद आकिब अंसारी ने कहा कि ईरान के सिमनान कस्बे में 707 हिजरी (सन 1286 ) में सूफी सन्त मखदूम अशरफ का जन्म हुआ था। बचपन से ही मखदूम साहब फकीरी, साधुत्व व ईश्वर प्रेम में लीन रहा करते थे। जब मखदूम साहब 15 वर्ष के थे त्यों ही उनके बादशाह पिता इब्राहिम का स्वर्गवास हो गया था। परिणामस्वरूप आपको उनका उत्तराधिकारी चुना गया कुछ वर्षों तक राजपाट चलाने के बाद आपकी यह दिली मन्शा थी कि अपने छोटे भाई सै़ मोहम्मद को राजसिहांसन सौंप कर ईश्वर की अराधना व तपस्या में लीन हो जाए। ऐसी मान्यता है कि ईरान के सिमनान में एक प्रार्थना सभा स्थल पर वह इबादत कर रहे थे तभी ईश्वरीय सन्देश प्राप्त हुआ कि राज सिहांसन का परित्याग करके ऐ मखदूम अशरफ फकीरी की मंजिल पाने के लिए हिन्दुस्तान की तरफ कूच कर जाओ।
इस अवसर पर दोनों संस्थाओं के पदाधिकारी गण डॉक्टर एहसान अहमद, मोहम्मद आकिब अंसारी, हाज़ी जलालुद्दीन कादरी, मकसूद अली, वसी अहमद, मोहम्मद अज़ीमुल्लाह, अयान अहमद निज़ामी, अनस खान आदि लोगों ने शिरकत की।